साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर-1

दोस्तो, मेरा नाम सविता सिंह है, मैं हरियाणा में रहती हूँ, 27 साल की शादीशुदा औरत हूँ। मेरी शादी हो गई है इसलिए अपने लिए औरत शब्द का इस्तेमाल कर रही हूँ, वरना लड़कपन तो मुझमें अभी भी बहुत है। आज भी मैं बच्चों जैसे चुलबुली हरकतें करती हूँ, इसी लिए अपने मायके और ससुराल में सबको प्यारी लगती हूँ।मायका तो खूब भरा पूरा परिवार है मेरा, मगर ससुराल में सिर्फ मेरे पति और मेरे ससुर ही हैं। ससुर भी सगे नहीं हैं, मेरे पति के चाचा हैं, 54 साल के हैं मगर आज भी बहुत ही चुस्त दरुस्त और तन्दरुस्त हैं। वो एक रिटायर्ड सरकारी अफसर हैं। शादी के कुछ साल बाद ही उनका अपनी पत्नी से तलाक हो गया था, उसके बाद उन्होंने नौकरी से रिटाइरमेंट ले ली, दूसरी शादी नहीं की, वो हमेशा अकेले ही रहे।
उनकी आमदनी ब्याज पर पैसा देने से और गाँव में थोड़ी बहुत खेती बाड़ी से है, एक दो समाज सेवी संस्थाए हैं जिनमें वो कभी कभार जाते रहते हैं, वरना सुबह और शाम की सैर के अलावा वो सारा दिन घर में अपने कमरे में बैठे टीवी देखते रहते हैं या साहित्यक किताबें पढ़ते रहते हैं।चाचा अपने आप को वो बहुत फिट रखते हैं और बेशक सर के बाल और बड़ी बड़ी मूंछों के बाल आधे से ज़्यादा सफ़ेद और थोड़े से काले हैं, मगर फिर भी वो बहुत जँचते हैं।और मैं उन्हें कभी चाचाजी तो कभी पापा कहती हूँ.
लो आप सोचोगे कि मैं अपना छोड़ कर कहाँ, चाचा का बखान करने बैठ गई।
अपने बारे में भी बता देती हूँ। शादी से पहले मैं अपने स्कूल और कॉलेज के एक बहुत ही होशियार स्टूडेंट थी, मैंने बी कॉम फ़र्स्ट डिवीज़न में किया है। मगर घर में माहौल थोड़ा टाईट होने के वजह से कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं बना पाई, पापा और भाई लोग से डर ही बड़ा लगता था।
मेरी सहेलियों के बॉयफ्रेंड थे, बस उनसे उनकी कहानियाँ सुन कर और रात को अपने बिस्तर पर उनके बॉय फ्रेंड से अपने खयालों में लिपट कर, सिरहाने को ही अपनी आगोश में कस कर भर कर अपना मन बहला लेती थी। अक्सर अपनी सहेलियों से सुनती उन्होंने कैसे अपने बॉयफ्रेंड से सेक्स किया और क्या क्या मज़े किए, मगर मैं तो सिर्फ अपना मन मसोस कर ही रह जाती।
जैसे जैसे मैं जवान हो रही थी, मेरा बदन भर रहा था, मेरे मम्मे, मेरे कूल्हे भारी होते जा रहे थे, देखने में भी बहुत सुंदर हूँ मैं, मेरी कई सहेलियों के बॉयफ़्रेंड्स ने मुझे भी लाइन मारी, कई अपने दोस्तों से मेरी सेटिंग की बात करी, मगर मैंने कभी हाँ नहीं कही।
इसी लिए शादी से पहले तो सच कहूँ मैं सिर्फ ब्लू फिल्मों में ही मर्द का लंड देखा था। जब ब्लू फिल्में देखती, तो खूब अपनी चूत मसलती, खूब पानी छोड़ती, बड़ा दिल मचलता कि कोई मुझे भी जम कर चोदे, खूब पेले, रुला दे मुझे, मगर ऐसा कोई मौका शादी से पहले मुझे नहीं मिला।
फिर जब मैं बी कॉम के फाइनल ईयर में थी तभी मेरी सगाई हो गई। मेरे पति भी देखने में बहुत ही आकर्षक हैं, पहली नज़र में ही मुझे इनसे प्यार हो गया। उसके बाद सगाई से लेकर शादी तक हम कई बार मिले, एक बार एक साथ मूवी भी देखने गए, मगर मेरे पति ने कोई जल्दबाज़ी नहीं की, सिर्फ मुझे कुछ पप्पियां जफ़्फियां ही मिली, मगर मैं इस से भी बहुत खुश थी कि जो एक बॉयफ्रेंड का सपना मैं देखती थी, वो मेरा मंगेतर पूरा कर रहा था।
इन्होंने पहले ही कह दिया था कि जितना ज़्यादा प्रेम हम अब कर लेंगे, उतना ही सुहागरात का मज़ा कम हो जाएगा।मैंने भी अपनी सभी इछाएँ अपनी सुहाग रात तक रोक ली, दबा ली। अब 25 साल से दबा रखी थी, तो कुछ दिन और सही।
फिर मेरी शादी हुई और सुहागरात भी मनाई। सच में वो मेरी ज़िंदगी की बड़ी हसीन रात थी, वो मैं फिर कभी आप को बताऊँगी। पहले मैं आपको अपने चाचा ससुर के साथ अपना किस्सा सुनाती हूँ।
शादी के एक साल बाद तक हम दोनों मियां बीवी ने खूब मज़े किए, क्योंकि मेरी पति उस वक़्त तक अपनी कंपनी में जूनियर ऑफिसर थे, तो काम भी कम था, ज़िम्मेवारी भी कम थी। तो वो अक्सर शाम को 6 बजे तक घर आ जाते थे।
घर में भी सिर्फ चाचा जी ही तो होते थे, वो भी अक्सर शाम की सैर करने गए होते थे, तो सबसे पहले जो काम मेरे पति घर आते ही करते थे, वो था सेक्स। रात को तो रोज़ होता ही था, मगर उसके अलावा जब भी मौका मिलता या समय मिलता, हम दोनों सिर्फ और सिर्फ सेक्स करते।25 साल की मेरी काम पिपासा को मेरे पति ने खूब शांत किया। जितनी गर्मी मेरे जिस्म में थी, मेरी चूत से सफ़ेद पानी बन कर निकली।
मैं आपको बताऊँ कि बड़ी मुश्किल लगती थी मुझे जब मुझे पीरियड्स होते, जिस दिन पीरियड्स खत्म होते, उसी दिन से फिर रोजाना सेक्स शुरू। पीरियड्स में एक दो बार मेरे पति ने पीछे से मेरी गांड में भी करने की कोशिश की, मगर मुझे उसमें कोई मज़ा नहीं आया, तो मैं उन मुश्किल दिनों में अपने पति को अपने मुँह से सुख देती। तभी मुझे उनका वीर्य पीने की आदत पड़ गई, और ऐसी आदत पड़ी कि आज तक मुझे हर बार पुरुष का माल अपने मुँह में चाहिए, शायद यही वजह है कि शादी के दो साल से भी ज़्यादा बीत जाने के बावजूद हमने अभी तक कोई बच्चा नहीं किया, क्योंकि मर्द का माल जिस छेद में गिरना चाहिए वो उस छेद की बजाए किसी और जगह से मेरे पेट में पहुँच रहा है, तो बच्चा कहाँ से हो।
शादी के बाद मैं थोड़ा और भर गई, पहले मेरे बूब्स 34 के थे, पर अब 36 के हो गए और कप साइज़ भी बढ़ कर बी से सी हो गया। बूब्स के नीचे और नाभि से ऊपर मेरे गोरी चिकनी कमर अभी भी 30 की है, पर नाभि से नीचे मेरे कूल्हे 33 से 36 हो गए हैं।मेरे अपने शीशे ने मुझसे कई बार कहा है- सावी, तुम पहले से भी ज़्यादा सेक्सी हो गई हो।
हर महीने में करीब करीब 50 से 60 बार मेरी चुदाई होती ही होती थी। इसी लिए मुझे धीरे धीरे इस सबकी इतनी आदत सी पड़ गई, दिन में जब मैं घर में अकेली होती तो भी कई बार मेरा जी करता कि मैं सेक्स करके देखूँ।इसी वजह से मैंने अपने मोबाइल पर पॉर्न देखना शुरू किया, अन्तर्वासना डॉट कॉम पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ती, और जब कहानी पढ़ती तो फिर अपनी चूत को भी सहलाती, तो मुझे हाथ से करने की भी आदत पड़ गई। जो काम मुझे शादी से पहले स्कूल या कॉलेज में करने चाहिए थे, वो सब मैं शादी के बाद कर रही थी।
और जब शाम को 6 बजे पति घर आते तो उनसे ज़्यादा मैं तत्पर रहती चुदाई के लिए। कभी कभी तो पहले से ही नंगी हो जाती कि कपड़े उतारने में भी समय बर्बाद न हो।मेरे पति भी कहते- साली बड़ी चुदासी हो रही है, इतनी भी क्या आग लगी है तेरी चूत में?मैं कहती- शादी से पहले कोई मिला नहीं, अब 25 साल की जल रही आग को आप ही तो ठंडी करोगे, अब बातें बंद और बस शुरू हो जाओ!
मैंने कभी अपने पति को ये कहने के मौका नहीं दिया ‘अरे यार, थोड़ा सा लंड ही चूस लो।‘ मैं हमेशा उनके कहने से पहले ही मैं उनका लंड चूसने लग पड़ती थी। वो भी मेरी चूत को चबा जाने की हद तक चाटते थे। बहुत बार मैं उनके मुँह में झड़ जाती।
शादी के करीब एक साल बाद इनको प्रमोशन मिला और अब सीनियर स्केल में ऑफिसर बन गए, जिस कारण इनका घर आने के कोई समय ही नहीं रहा। सुबह 9 बजे जाते तो कभी रात को 8 बजे, कभी 9 बजे कभी 10 बजे आते। मेरे तो सारे अरमान ही अधूरे रह गए।अक्सर शाम को मैं तैयार हो कर रहती और इनका फोन आ जाता कि आज लेट आऊँगा। मैं तड़प के रह जाती। कभी कभी तो अकेले ही खाना पड़ता।
मगर फिर भी मैंने खुद को कंट्रोल किया, अपने आप को संभाला। क्योंकि तब तक मैंने अपने पति के अलावा किसी और गैर मर्द की तरफ देखा तक नहीं था। कभी कभी दिल में विचार भी आया कि पड़ोस के चोपड़ा भाई साहब भी बहुत हैंडसम हैं, मगर ऐसा करती तो हो सकता है सारे मोहल्ले में बदनाम हो जाती।इसलिए अपने आप को काबू में रखती।
दिन में अक्सर मैं चोपड़ा जी के घर चली जाती, उनकी बीवी मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी, चोपड़ा जी भी अपने बिजनेस के सिलसिले में बाहर होते। मैं सुबह नाश्ता बना कर, चाचा जी को नाश्ता करवा कर तैयार हो कर चोपड़ा जी घर जाती और फिर घंटा डेढ़ घंटा उनसे गप्पे मार कर अपने घर आती और फिर दोपहर का खाना बनाती। इतनी देर में मेरे पीछे से हमारी काम वाली आती और घर के सारे काम कर जाती।
ऐसे ही एक दिन मैं चोपड़ा भाभी के घर बैठी थी, तो भाई साहब का फोन आ गया कि उन्होंने बाहर कहीं जाना था, तो मैं वापिस अपने घर आ गई। घर में अंदर दाखिल हुई और किचन में गई, अभी तो बर्तन भी साफ नहीं हुये थे, झाड़ू पोंछे का काम भी अभी अधूरा था।
मैंने सोचा ‘लगता आज रजनी आई नहीं’ तो मैंने उसे फोन लगाया।उसने फोन उठाया, मैंने पूछा- रजनी कहाँ हो?वो उधर से बोली- दीदी, मैं तो आपके घर में हूँ, झाड़ू लगा रही हूँ।
मुझे बड़ा गुस्सा आया कि मुझसे झूठ बोल रही है, मैं किचन से बाहर आई तो देखा झाड़ू पोंछा सब हाल में पड़ा था, और उधर से रजनी ने फोन भी काट दिया।
मेरे गुस्से की कोई सीमा नहीं रही, मैं अभी दोबारा उसे फोन करने ही वाली थी, तभी मुझे चाचा जी के रूम से उनके बोलने की आवाज़ आई। मैं सोचने लगी, अगर झाड़ू पोंछा बाहर है तो रजनी अंदर क्या कर रही है।मेरे मन में शंका सी पैदा हुई तो मैं चुपके से चाचा के रूम के दरवाजे के पास गई। दरवाजा बंद तो नहीं था, तो मैंने दरवाजे के साथ कान लगा कर सुना, मुझे दोनों के हंसने की आवाज़ आई। पहले भी चाचाजी रजनी से बात करते थे, मगर आज उनकी हंसी कुछ अलग सी थी।
मैंने बड़े धीरे से दरवाजा खोला और थोड़ा सा खोल कर अंदर झाँक कर देखा, अंदर तो जैसे आग लगी पड़ी थी, चाचाजी अपने बेड पर बिल्कुल नंगे लेटे थे, मोटा, लंबा काला लंड और रजनी अपनी सारी साड़ी ऊपर अपने पेट के पास पकड़ कर चाचा जी के पेट पर चढ़ी बैठी थी, और चाचाजी का लंड पकड़ कर अपनी चूत पर सेट कर रही थी.और अगले ही पल चाचाजी का लंड उसकी चूत में घुस गया और जैसे जैसे वो नीचे को बैठती जा रही थी, उसकी चूत चाचाजी का लंड निगलती जा रही थी।
और ये लो… वो तो चाचाजी का सारा लंड खा गई… फिर लगी ऊपर नीचे होने।
मैं बाहर खड़ी उस दादा पोती की उम्र लोगों की काम लीला देख रही थी। मैं तो खुद सेक्स की हर वक़्त भूखी रहती थी, तो ये कैसे संभव था कि ये दृश्य मुझ पर असर न करता। मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत तक चला गया। अंदर रजनी चाचा जी से चुदवा रही थी और दरवाजे के बाहर खड़ी मैं चाचाजी के लंड की दीवानी हो रही थी कि इस उम्र में भी चाचाजी में क्या दम था।
रजनी के गोरे चूतड़ों में चाचाजी का काला लंड अंदर बाहर जाने लगा। रजनी की चूत भी पानी छोड़ रही थी, जिस वजह से चाचाजी का लंड भीगा हुआ था।
कहानी जारी रहेगी.



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